रंग बदलते रिश्ते (#लेखमंथ कविता प्रतियोगिता)लेखनी कविता -28-Jun-2022
रंग बदलते रिश्ते ( चौपाई छंद)
दोहा
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क्षमा करो प्रभु अब हमें, हों रिश्ते मजबूत।
क्या गलती हमसे हुई, भेजो कोई दूत।।
चौपाई
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मात - पिता की करते सेवा।
लालच मन में दिखता मेवा।।
जिसने जोड़ी दौलत सारी।
उसकी ही मारे हकदारी।।१)
रिश्ते अब तो रंग चढ़ाते।
मतलब के हैं सारे नाते।।
आज सभी रिश्ता है झूठा।
धन दौलत के कारण रूठा।।(२)
राखी का वो धागा टूटे।
भाई बहनों का हक लूटे।।
छूट मायका अब है जाता।
माँ का बदला रूप दिखाता।।(३)
कैसी ये उसकी मजबूरी।
बेटी से क्यों करती दूरी।।
क्यों करते हैं उसे पराई।
माँ कैसी ये रीत निभाई।।(४)
कैसा ये कलयुग है आया।
माँ की भी बदली है काया।।
बेटी का वो ध्यान न रखती।
बिगड़ रही है सब से कहती।।(५)
जन्म दिया दोनों को माता।
फिर क्यों केवल बेटा भाता।।
बदल रही है सारी दुनिया।
कहती है ये तेरी मुनिया।।(६)
माँ तेरी ही हूँ मैं बेटी।
झूठ कपट में मुझे लपेटी।।
बदल गई क्यों अब तूं ऐसे ।
देख बुरा सपना हो जैसे।।(७)
यह तन - धन दो दिन का मेला।
संग न जाएगा इक ढेला।।
छोड़ लड़ाई झगड़ा सारा।
बने खुशी रिश्तों में प्यारा।।(८)
दुमदार दोहा
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रंग बदलते लोग वो, रिश्ते तोड़ें आज।
मजबूरी का नाम दे, बेटे करते राज।।
सभी घर झगड़ा होता।
खून अपना ही रोता।।
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कविता झा'काव्या कवि'
# लेखनी
##लेखनी देख मंथ प्रतियोगिता
२८.०६.२०२२
Swati chourasia
08-Jul-2022 06:35 PM
वाह बहुत खूब 👌👌
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Seema Priyadarshini sahay
01-Jul-2022 10:45 AM
अद्भुत रचना👌👌
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Pallavi
29-Jun-2022 06:33 PM
Very nice 👍
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